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Know Bhagwad Geeta 3/42

इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः । मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः ॥ भावार्थ :  इन्द्रियों को स्थूल शरीर से परे  यानी श्रेष्ठ, बलवान और सूक्ष्म कहते हैं।   इन इन्द्रियों से परे मन है, मन से भी परे  बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यन्त परे  है वह आत्मा है॥ श्रीमद्भगवद गीता ने मानव मात्र को शरीर ,इन्द्रिय ,मन ,बुद्धि और आत्मा का भेद बताया है।  एवं बुद्धेः परं बुद्धवा संस्तभ्यात्मानमात्मना । जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्‌ ॥ भावार्थ :  इस प्रकार बुद्धि से परे  अर्थात सूक्ष्म, बलवान और अत्यन्त श्रेष्ठ आत्मा को जानकर और बुद्धि द्वारा मन को वश में करके हे महाबाहो! तू इस कामरूप दुर्जय शत्रु को मार डाल॥ श्रीमद्भगवद गीता ने मानव मात्र को अत्यन्त  श्रेष्ठ आत्मा को जानने का  प्रयास करना चाहिए। इसके लिए शरीर,मन,बुद्धि के क्रिया कलापों पर नजर रखनी होगी। 

Srimad bhagwad Geeta Rahasya 3/30

मयि सर्वाणि कर्माणि सन्नयस्याध्यात्मचेतसा । निराशीर्निर्ममो भूत्वा युध्यस्व विगतज्वरः ॥   मुझ अन्तर्यामी परमात्मा में लगे हुए चित्त द्वारा सम्पूर्ण कर्मों को मुझमें अर्पण करके आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर युद्ध कर॥ श्रीमद्भगवद्गीता एक मात्र ऐसा ग्रन्थ है जो स्पष्ट करता है कि सच्चाई के लिए, न्याय के लिए युद्ध करना चाहिए।  यह युद्ध      आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर करना होगा। हम देश भारत में देखते हैं कि जो लोग  या समुदाय हिंसक हैं या धनवान हैं उनके खिलाफ मीडिया , सरकार ,न्यायपालिका नरम रुख अपनाती है।  जो साधु/ संत व् समुदाय शांत रहते हैं उनके खिलाफ षड़यंत्र होते हैं मीडिया , सरकार ,न्यायपालिका रुख  भेदभाव वाला दीखता है।  अतः  सच्चाई के लिए, न्याय के लिए   यह    आशारहित, ममतारहित और सन्तापरहित होकर संघर्ष  करना होगा। श्री नारायण साई और संत श्री आसारामजी बापू पर  सूरत की दो महिलाओं ने ११ और १२ साल पहले रेप किया ऐसा केस किया , हिन्दू द्रोही मीडिया ,भ्रष्ट...

मौलिक शिक्षा और अर्थशास्त्र

मौलिक शिक्षा और अर्थशास्त्र हमारे देश में झूठी शान शौकत ,अपनी बड़ाई ,पदवी,जात -पात ,ऊंच -नीच , सम्प्रदाय  में जीवन जीने की आदत पड़ी है ,इसलिए हमारे देश की जनता इसे किसी भी तरह छोड़ना नहीं चाहती। अर्थशास्त्र का साधारण नियम है कि जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो व्यक्ति उस वस्तु को कम खरीदता है।  परन्तु हमारे देश में जब  रेट  ५-१० रूपये प्रति किलो प्याज /टमाटर बिके तो १-१/२ किलो खरीदते है अपने दैनिक गुजारे लायक।  जब रेट ३०-४० रुपये प्रति किलो हो तो ५-१० किलो खरीदना शुरू कर देते हैं  माह लायक यानी इस शंका में कि  रेट न बढ़ जाएँ फिर जमाखोरी । इसलिए जब आप दैनिक गुजारे की जगह माह की खरीददारी कर लेते हैं तो बाजार में प्याज /टमाटर की कमी हो जाती है। थोक व्यापारी   इस शंका में कि वस्तुएँ ख़त्म न हो जाये , फिर जमाखोरी ।यदि सभी जनता मौलिक शिक्षा के अंतर्गत दैनिक आपूर्ति का ज्ञान रखे और अर्थशास्त्र के नीयम को प्रासंगिक बना दे तो प्याज/टमाटर के रेट कभी जीरो से निचे यानि ढुलाई भी अपने खर्च पर और कभी सौ  से पार न होगी।...