मौलिक शिक्षा और अर्थशास्त्र

मौलिक शिक्षा और अर्थशास्त्र

हमारे देश में झूठी शान शौकत ,अपनी बड़ाई ,पदवी,जात -पात ,ऊंच -नीच , सम्प्रदाय  में जीवन जीने की आदत पड़ी है ,इसलिए हमारे देश की जनता इसे किसी भी तरह छोड़ना नहीं चाहती। अर्थशास्त्र का साधारण नियम है कि जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो व्यक्ति उस वस्तु को कम खरीदता है।  परन्तु हमारे देश में जब  रेट  ५-१० रूपये प्रति किलो प्याज /टमाटर बिके तो १-१/२ किलो खरीदते है अपने दैनिक गुजारे लायक।  जब रेट ३०-४० रुपये प्रति किलो हो तो ५-१० किलो खरीदना शुरू कर देते हैं  माह लायक यानी इस शंका में कि  रेट न बढ़ जाएँ फिर जमाखोरी । इसलिए जब आप दैनिक गुजारे की जगह माह की खरीददारी कर लेते हैं तो बाजार में प्याज /टमाटर की कमी हो जाती है। थोक व्यापारी   इस शंका में कि वस्तुएँ ख़त्म न हो जाये , फिर जमाखोरी ।यदि सभी जनता मौलिक शिक्षा के अंतर्गत दैनिक आपूर्ति का ज्ञान रखे और अर्थशास्त्र के नीयम को प्रासंगिक बना दे तो प्याज/टमाटर के रेट कभी जीरो से निचे यानि ढुलाई भी अपने खर्च पर और कभी सौ  से पार न होगी। 
जनता सोचती है की ये कार्य सरकार ,प्रशासन का है ,हमारा कार्य तो गुजारा  करना है। वास्तव में ऐसे उपभोक्ताओं से किसान और जनता का ही नुकसान होता है। हमारा आयात व्यय भी देश हित  में नहीं होता है। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Hans chugega dana dunka koa moti khayega,Esa kalyug ayega.

देश को दी गई विदेशी शिक्षा का असर।

कुलिष्ट देवी- देवता परंपरा का क्षरण