हमारे पूर्वज , वीर और जंगल , पशु - पक्षियों के मित्र
केवल ५० वर्ष पूर्व गांव पनेवा ( जौणा जी ) सोलन के श्री लक्ष्मीनंद शर्मा (पिता श्री इंद्र दत्त शर्मा) ताया जी श्री गंगा दत्त शर्मा /गणेश दत्त शर्मा श्याहाग जंगल के गुफा / बेशक में जंगल मैदान में श्रावण और भादों महीनो में पत्नी सहित रात - दिन रहते थे। वह ४-५ भैंसें दिन में चराते थे और दूध/खोया सहेजते थे। उनके बच्चे जंगल आकर दूध, घी , खोया अदि ले जाते थे और गुड़ ,चाय पत्ती , आटा ,चावल, अदि छोड़ जाते। उस जंगल में पड़ोसी और भाई-बंडार की भैंसें भी चरा देते थे। बेटा - बहु -बच्चे गांव में रहते थे।
इसी समय गावं कलोग -मही ( कंडाघाट ) के मनसा राम शर्मा /हरी राम शर्मा ( पिता श्री ओम प्रकाश शर्मा पिता श्री हरीश शर्मा ) भी करोल के जंगल में बेशक बना कर आषाढ़ से आसोज तक ४ महीने शाम , दोपहर , रात्रि को ५-७ भैंसों को चराने के लिए रहते थे , सुबह दूध लेकर गांव आते थे।
दोनों गांव के बुजुर्गों द्वारा जंगल में पेड़ों और जंगली जानवरों से प्यार करना ,आवाजें देना इनकी आदत रही है। पशुओं को चराते समय यह भगवद गीता ,रामायण , बुजुर्गों से सुने मन्त्रों को याद करते थे। श्याहाग जंगल की देवी माँ शमाषण और करोल की शिखर देवी की उन्हें प्रत्यक्ष रक्षा रहती थी।
ऐसा ही कार्य अन्य स्थानीय परिवार भी करते थे।
संकलन कर्ता
संतोष कुमार भरद्वाज
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