प्रश्नोत्तर-1a

 प्रश्न : तपस्वी  कितने प्रकार के होते हें ?

उत्तर : 3 प्रकार के 

1) सात्विक   :

 अहिंसक , जीवनपर्यंत  मनुष्यों ,जीव जंतुओं का भला करने  वाले , सभी नशे  और विषय विकार से दूर रहने वाले , निंदा -स्तुति से निर्लेप , काम-क्रोध -लोभ-मोह-अहंकार से विमुक्त होते हें । उदाहरण त्रेता में  ऋषि वशिष्ठ  और कलयुग में  संत श्री आशाराम जी बापू जो सभी नशे , भिक्षा वृत्ती के विरूद्ध रहे । जो प्रशासन ,शासन षड्यंत्रकारी उनको मिटाना चाहते हें उनका भी बुरा नहीं करते /चाहते । वह सनातन के 4 वेद ,6 शास्त्र ,18 पुराण ,भारत के ऋषि मुनियों की कथाओं का गुणगान करते और अपने शिष्यों से करवाते हें । वह सभी कष्टों का खुद सामना कर रहे हें । ईश्वर उनकी वाणी को तुरंत सिद्ध करते हें । 

2) राजसी  :

      यह उच्च श्रेणी के आश्रमधारी , हठ योगी ,राज सत्ता के हिमायती , सुख समृद्धि के चाहने वाले , जाती ,धर्म और दौलत, पद,परिवार  के आधार पर शिष्य बनाने वाले । सत्ता से उनकी वृत्ति के अनुसार हिमायत या टकराव ।ये  शस्त्र ,शास्त्र,तप ,भ्रमण ,देश -काल की संस्कृति  के आधार पर निर्णय करने मे पारंगत  होते हें ।

उदाहरण त्रेता में ऋषि परशुराम,  कलयुग में  विभिन्न अखाड़े साधुओं के ।;

3 तामसी  : 

        यह  आश्रमधारी -घुमंतू ,हठयोगी ,भिक्षावृत्ति के हिमायती ,कड़क मिजाजी ,तुरंत आशीर्वाद या शाप देने में सक्षम ।;हर प्रकार की परीक्षा लेने की प्रवृत्ति  ।अनेक सिद्धियों को कठिन तप से प्राप्त करने वाले फिर उसका सही या कभी गलत प्रयोग से समाज को प्रभावित करने वाले ।

उदाहरण  त्रेता युग में रावण  कलयुग में अनेक घुमंतू तपस्वी 

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