हिमाचल के रामलोक में तपस्वी श्री अमर देव
हिमाचल के रामलोक में तपस्वी श्री अमर देव
हिमाचल के कंडाघाट -कालीटिब्बा क्षेत्र में १०-१२ वर्ष की उम्र में रामभक्त अमरदेव जी का आगमन हुआ वह साधारण परिवारों में निवास करते और रामचरितमानस पाठ करते ,उनकी तपस्या साधना प्रभाव से लोगों ने उन्हें रूडा (कलहोग )कंडाघाट में कुटिया बना दी। उनके आशीर्वाद ,तपस्या का प्रकाश फैलने लगा और भक्तों की वृद्धि हुई ,लगभग २५-३० वर्ष की उम्र में दशहरा संघ पथसंचलन के मुख्य वक्ता बने। उनकी कुटिया में मुख्य मंत्री व् अन्य मंत्रियों का भी आगमन होता रहा।
उनके साधक शिष्यों ने भगवान् राम , नव ग्रहों , माँ दुर्गा , माँ भीमा काली और अन्य देवताओं का भव्य मंदिर निर्माण किया है। भव्य स्वर्ण मूर्तियां स्थापित की है। श्री अमरदेव दिव्य अनुभव के स्वामी है और वह संत श्री आशारामजी बापू के बारे में वह स्पष्ट कहते है कि वह महान संत है और राजकीय तंत्र की ऑंखें फटी है ,जो प्रताड़ना कर रहे हैं।
राम भक्त श्री अमरदेव जी उग्र स्पष्ट वक्ता हैं इसलिए कई छुट भैया नेता उनके विरोधी रहे ,छापे डलवाए , हमला किया ,महिला केस भी किया।लेकिन सब व्यर्थ।
आज भी वह स्वयं छोटी सी कुटिया में भूमि शयन करते हैं और वहां भगवान राम और अन्य देवी देवताओं का भव्य मंदिर और स्वर्ण मूर्तियां हैं। इस तीर्थ को रामलोक नाम दिया गया है
हिमाचल के कंडाघाट -कालीटिब्बा क्षेत्र में १०-१२ वर्ष की उम्र में रामभक्त अमरदेव जी का आगमन हुआ वह साधारण परिवारों में निवास करते और रामचरितमानस पाठ करते ,उनकी तपस्या साधना प्रभाव से लोगों ने उन्हें रूडा (कलहोग )कंडाघाट में कुटिया बना दी। उनके आशीर्वाद ,तपस्या का प्रकाश फैलने लगा और भक्तों की वृद्धि हुई ,लगभग २५-३० वर्ष की उम्र में दशहरा संघ पथसंचलन के मुख्य वक्ता बने। उनकी कुटिया में मुख्य मंत्री व् अन्य मंत्रियों का भी आगमन होता रहा।
उनके साधक शिष्यों ने भगवान् राम , नव ग्रहों , माँ दुर्गा , माँ भीमा काली और अन्य देवताओं का भव्य मंदिर निर्माण किया है। भव्य स्वर्ण मूर्तियां स्थापित की है। श्री अमरदेव दिव्य अनुभव के स्वामी है और वह संत श्री आशारामजी बापू के बारे में वह स्पष्ट कहते है कि वह महान संत है और राजकीय तंत्र की ऑंखें फटी है ,जो प्रताड़ना कर रहे हैं।
राम भक्त श्री अमरदेव जी उग्र स्पष्ट वक्ता हैं इसलिए कई छुट भैया नेता उनके विरोधी रहे ,छापे डलवाए , हमला किया ,महिला केस भी किया।लेकिन सब व्यर्थ।
आज भी वह स्वयं छोटी सी कुटिया में भूमि शयन करते हैं और वहां भगवान राम और अन्य देवी देवताओं का भव्य मंदिर और स्वर्ण मूर्तियां हैं। इस तीर्थ को रामलोक नाम दिया गया है
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