कुलिष्ट देवी- देवता परंपरा का क्षरण

प्रश्नोत्तर -2

 बुजुर्गों से सुना है कि हमारे  कुलिष्ट  देवी -देवता बहुत शक्तिशाली होते है । वह आशीर्वाद और दंड देने मे सक्षम होते । कुलदेवता परिवार में शादी विवाह , संतान, भू तक़सीमी , चुनाव में जीत ,रोगनाश ,वर्षा-बर्फ, युद्ध विजय   का आशीर्वाद और दुष्ट का कुल खानदान समाप्त करने का तुरंत निर्णय करते रहे ।

उत्तर -2

सही 100%, परंतु इस नए अशिष्ट समय में माँ -बाप अपनी संतानों को झूठ , आलसी ,अश्लीलता  , नशा ग्रस्त देख कर देव-देवी  के पारिवारिक रिवाज नीयम से अवगत नहीं करवाते ।आधुनिक पढ़े लिखे ,नोकरी पेशा  युवक- बच्चे देवी देवता के गूर ,देवा ,बाजकी,पुजारी, पुरोहित ,भण्डारी,पलघेरी, जो कि अलग अलग जातियों के होते हें , की आज्ञा पालन व सम्मान नहीं करते  साथ ही देवी -देवताओं की भूमि को  सरकार ने  मुजारों को बाँट दिया या खुद कब्जा कर लिया ।  इससे पुजारी ,देवा ,गूर ,पलघेरी ,भण्डारी ,पुरोहित , सहायकों को मिलने वाली आय समाप्त हो गई ।जो लोग मंदिर के  खेतों में मुफ्त सेवा करके मंदिर की आय बढ़ते थे वो क्या करते ?  देव स्थानों में अनुष्ठान होने में व्यवधान आया ,सनातन शास्त्र -मूल ग्रंथ -मूल अनुष्ठान बंद हो गए ,संस्कृत कर्म कांड के विद्वान पंडित मंदिरों से चले गए और अन्य व्यवसाय करने लगे , इस वजह से ये  परिवार भी इस जिम्मेवारी से भाग जाते है। साधू संत जो मंदिरों में बेठ कर ज्ञान बांटते थे वो बंद हो गए ।  धीरे धीरे देव-स्थानों में नेताओं और अमीरों का बोल -बाला हो गया जो नीयम का पालन न स्वयं करे न करवा सकते । उदाहरण के लिए शिल्ली सोलन के जगन्नाथ मंदिर की 600 बीघा जमीन थी ,जो अधिकांश  मुजारों को मालिक बना गई , कुछ  मालिकों ने कल्याणों से बाहर के लोगों को  भूमि बेच भी दे  परंतु वहाँ  मंदिर में आज  16 वीं पीढ़ी का पुजारी है परंतु वह मालिक नहीं बना । जौनाजी सोलन के चतुर्भुज नारायण मंदिर की  पुजारी परिवार  की सारी जमीन गई , वह  भूमिहीन बनने की वजह से मात्र एक नंबर भूमि बचाने  के लिए आज भी कोर्ट में  है।

इसका ये परिणाम हुआ कि समाज में लुटेरों ,टूने-टोटके ,धर्मांतरण ,नशेड़ियों ,भङ्गेड़ियों ,दर-दर मांगने वालों ,जादू वालों का बोल-बाला चल रहा है । कर्म कांड ,ज्योतिष ,देव अनुष्ठान , मंदिर पाठशाला ,भोजन शाला ,दानशाला ,भजन कीर्तन शाला , संगीत-शाला ,आगंतुक शाला ,साधू सन्यासी -ब्रह्मचारी -वैरागी  सिधपीठ बंद होती चली गई ।

 आधुनिक फिल्मों ,पत्रिकाओं ,शिक्षा ने भी देव परम्पराओं का मज़ाक उड़ाया ।

 


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