Gyan swaroop Bhagwad Geeta 4/39
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
यदि ज्ञान प्राप्त करने की,रहस्य ज्ञात करने की इच्छा तत्पर हो तो श्रद्धा और इन्द्रयों के सयम के साथ साधना की जाए तो ही ज्ञान प्राप्त होगा और परम् शांति का अनुभव होगा।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं।
यदि ज्ञान प्राप्त करने की,रहस्य ज्ञात करने की इच्छा तत्पर हो तो श्रद्धा और इन्द्रयों के सयम के साथ साधना की जाए तो ही ज्ञान प्राप्त होगा और परम् शांति का अनुभव होगा।
सांसारिक ,आध्यात्मिक शिक्षा के साथ प्रयोगात्मक अनुभव होने पर ज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रत्येक परिस्थिति में ज्ञान सदैव प्रकाशमान रहता है।
इस युग में मनुष्य स्वयं को ज्ञानवान समझते है, संकल्प और विकल्प के भंवर जाल में फंस कर प्रयोगात्मक अनुभव के बगैर अज्ञानी बन कर जीवन गुजार देते हैं। उदाहरण के लिए भारत में जो मीडिया , सोशल मीडिया ,षड्यंत्रकारी,साम्प्रदायिक ,धार्मिक उन्मादी,विदेशी धर्म परिवर्तनकारी जो झूठा प्रचार करते हैं उससे लोग प्रभावित होते हैं और सच मान कर देश और समाज का अहित कर बैठते हैं।मुगलों , ईस्टइंडिअ कंपनी ने भारत में जातिवादी समूहों में ,राजाओं के परिवार में ,विभिन्न पेशे में लगे लोगों में लालच ,चुगली और प्रशंसा के द्वारा विष घोला और हिन्दुओं में घोर जाती विभाजन तथा राजपरिवारों में मारकाट मचवाई,,युद्ध किये, करवाए जिससे व्यापारिक लूट तथा धर्म परिवर्तन का लाइसेंस आसानी से मिल गया।
इन्द्रिय संयम और श्रद्धा न होने पर ज्ञान की प्राप्ति से आज भी दुनियां वंचित रहेगी।
हमारे पूर्वज बताते थे की उस समय राज टेक्स लगभग २५% था। परिवारिक मारकाट के बाद अपने पिट्ठू को राजा बनाया जाता था ,उन्ही राजा के द्वारा मोटा टेक्स बादशाह,कंपनी लेती थी,नया राजा बदनाम हो जाता था उससे मनमर्जी के युद्ध करवाए जाते तथा अपनी ही जनता का शोषण करवाया जाता रहा ,साथ ही जिस सामान पर बादशाह ,कंपनी की मोहर हो उस पर टैक्स नहीं लगता था। बादशाह ,कंपनी के लोग सीधे जनता ,व्यापारी से मिलकर मोहर लगा देते थे और राजा को २५% की बजाए लोग १५% कम्पनी को दे गए जिससे व्यापारी ,खरीददार खुश हो गए ,परिणाम ये हुआ की लोग अपने स्वार्थ के कारन राष्ट्र का कोष ख़तम करवा बैठे। विदेशियों ने हमारे स्वार्थ,जाती भेद को खूब गहरा किया और आपसी कलह के शिकार बने रहे।
इंग्लिश ,फ़ारसी से तीसरी पास सरकारी मुलाजिम लग जाते थे। भारतीय भाषाओँ का अपमान हमसे ही करवाया गया। हमारी सरकार और जनता की गुलाम मानसिकता आज भी जारी है। हमारे देश के ४% लोगों की भाषा इंग्लिश है परन्तु फिर भी पहले स्थान पर है,क्योंकि सत्ताधीश ,मलाईदार लोग नहीं चाहते की जनता ज्ञान अर्जित कर सके। उपरोक्त सन्दर्भ कभी इतिहास में नहीं लिखा गया। वह लिखा गया जो मुगलों या अंग्रेजों को फिट बैठता था।
nice
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