If know /Study Bhagwad Geeta 2/23


नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥
(
द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)
इस श्लोक का अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र  काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा के अजर-अमर और शाश्वत होने की बात की है।)
यदि व्यक्ति इस श्लोक का अर्थ समझ ले तो उच्च/नीच का भेद समाप्त हो जाए। उसका सारा भय समाप्त होगा। जो अच्छा कार्य है उसे वह निर्भय होकर ईश्वर परायण होकर कर  सकते है .पापियों,दुष्टों  का सहार करने का साहस आएगा।यदि ऐसा साहस पहले से होता तो ब्रिटिश ,मुग़ल राज देश में अत्याचार  ना होता। हजारों जातियों में देश न बंटता। एक दूसरे के खिलाफ रीती रिवाज न बनते।
आज कलभी  देश में डरपोक /निर्दयी/आतंकवादी /भ्र्ष्टाचारी का बोल बाला है क्योंकि सामान्य  लोग सोचते है कि हमे क्या लेना लड़ने व न्याय करने का काम तो सेना व   प्रशासन का है। हमने तो अपने घर में मजे से रहना है। अधिकारी ,व्यापारी ,किसान,कर्मचारी ,नेता ,मजदूर सभी को अपने आने वाले भविष्य की चिन्ता है। उसे ज्ञान नहीं कि हम सबको  सदा सदा के लिए रहने वाले है।  कर्म के अनुसार योनियां मिलेगी। जो संत निर्भय गीता ज्ञान देता हे उससे मीडिया,प्रशासन,सरकारें घबराकर उनका सत्संग बन्द करने में मशगूल रहती है   । उनकी अपनी जाँच एजेंसी ,पुलिस सोचती है कि गीता ज्ञान ,गीता की पुस्तकें बंटवाने वाले जनता से दूर रहे जिससे निर्भय गीता ज्ञान न फैल जाए। 

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