Karm & Sanskar

अपने कर्तव्य को समाज हित  के लिए निष्काम  होकर  तत्पर प्रयोग करना  ही  कर्म योग  है। वह कर्म जिससे जीव जगत का उत्थान हो ,शांति हो अच्छा कर्म है। कर्म ही योनिओं का निर्धारण करता है। 

टिप्पणियाँ

  1. यदि कोई मनुष्य खाने-पीने की तकलीफ होने पर भी मन-वचन-कर्म से सत्कर्म का आचरण करे, तो मैं ऐसे मनुष्य को ‘तिमिर से ज्योति में जाने वाला’ कहता हूं।

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