हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।
तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥
इस श्लोक का अर्थ है: यदि तुम (अर्जुन) युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे... इसलिए उठो, हे कौन्तेय (अर्जुन), और निश्चय करके युद्ध करो। (यहां भगवान श्रीकृष्ण ने वर्तमान कर्म के परिणाम की चर्चा की है, तात्पर्य यह कि वर्तमान कर्म से श्रेयस्कर और कुछ नहीं है।)
यदि इस श्लोक का पालन हो जाये तो सत्कर्म करने आसान है। डरने की कोई जरूरत नहीं है ,देश के सभी नागरिक बराबर है। कर्म ही व्यक्ति को क्षमता वान बनाते है। अन्याय के विरुद्ध निर्णायक युद्ध करने की हिम्मत आती है । यदि इस श्लोक का पालन होता तो देश में समान नागरिक सहिता बन गई होती। मंदिर,मस्जिद के लिए अलग अलग कानून न बनते।
नेता लोग व कुछ कर्मचारी ,अधिकारी ,आज भी पेंशन ले रहे है। वह स्वार्थ वश नई पेंशन स्कीम का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर पाते। उनको तो नई शिक्षा प्रणाली ने अटकना ,लटकाना और भटकना सिखाया है। श्रीमद भगवद गीता के श्लोक सिखाने वाले संस्कृत अध्यापक हिमाचल में प्रशिक्षित स्नातक अध्यापक नहीं माने जाते।
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