Bhagwad Geeta 2/13

देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा ।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति ॥


भावार्थ :  जैसे जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है, उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता।

                           यह भगवद्गीता है जो जीवात्मा की इस देह में अवस्थाओं के बारे में जानकारी देती है। अनेक सम्प्रदाय तो पुनर्जन्म ,अलग शरीर धारण करने के विचार नहीं रखते। अतः धीर वीर  को शरीर पर मोहित न होने को कहा गया है। 

किसी भी सम्प्रदाय ,धर्म का व्यक्ति इस सत्य को परख सकता है। परखेगा तब यदि कोई श्रीमद भगवद गीता का ज्ञान देगा। 

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