Bhagwad Geeta 2/48
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय ।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥
भावार्थ : हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर तथा सिद्धि और असिद्धि में समान बुद्धिवाला होकर योग में स्थित हुआ कर्तव्य कर्मों को कर, समत्व (जो कुछ भी कर्म किया जाए, उसके पूर्ण होने और न होने में तथा उसके फल में समभाव रहने का नाम 'समत्व' है।) ही योग कहलाता है॥
श्रीमद भगवद्गीता एक मात्र शास्त्र है जो कर्तव्य कर्मों को करने की समत्व योग भावना को बल देता है। भगवान कृष्ण यह ज्ञान अर्जुन को दे रहे हैं। यही ज्ञान मानव मात्र के लिए भी आवश्यक है।
श्रीमद भगवद्गीता वेद शास्त्रों का सारांश है। पूरे वेद शास्त्रों को पढ़ने समझने के लिए अनेक विश्वविद्यालय व् अनुसन्धान संस्थान खोलने होंगे जिससे कर्तव्य कर्मों को समझ सके इसलिए भगवद्गीता को भारत में अनिवार्य करना चाहिए। परन्तु इस देश के गुलाम मानसिकता वाले लोग सरकार और प्रशासन में कब्ज़ा करके बैठे हैं और वो कभी नहीं चाहते कि विज्ञान और अध्यात्म का विकास हो।
दुनिया के विकसित देश विज्ञान का प्रयोग करते हैं और अपने देश के नागरिकों को गुलाम मानसिकता से दूर रखते हैं और राष्ट्रिय कर्तव्य का बोध करते / करवाते हैं।
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