Bhagwad Geeta 3/8

नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्धयेदकर्मणः ॥

भावार्थ :  तू शास्त्रविहित कर्तव्य कर्म कर क्योंकि कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना श्रेष्ठ है तथा कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा॥ 

श्रीमद्भगवद गीता कितना स्पष्ट करके शास्त्र विहित कर्म करने का आदेश देती है। 
कर्म करना अत्यंत आवश्यक कहा गया है। अर्थात बिना कर्म किये परोपजीवी बनने से स्वयं व देश का भला कैसे होगा। 
शास्त्र संवत कर्म को ही करना श्रेयस्कर है जिससे प्रसन्नता,शांति प्राप्त हो।  आज भी देश में  जनता को  शास्त्र संवत कर्म की जानकारी नहीं दी जाती। 

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