Gyan amrit Bhagwad Geeta 2/15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥
भावार्थ : क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है॥
पूरी दुनियां का एक मात्रा ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता ही यह घोषणा करता है कि मोक्ष का अधिकारी वही होता है जिसे इन्द्रिय ( ५ ज्ञान इन्द्रिय और ५ कर्म इन्द्रिय ) और विषय ( काम ,क्रोध, लोभ,मोह, अहंकार ) के संयोग व्याकुल नहीं करते।
आज के युग में सभी सम्प्रदाय ,जातियों ,अमीर -गरीब ,सत्ता -विपक्ष ,रंग भेद,क्षेत्र भेद ,स्त्री-पुरुष अदि के आधार पर संघर्ष चल रहा है। सभी सम्प्रदाय,धर्म भेद के आधार पर संघर्ष रत हैं। इसी आधार पर नए - नए नीती , नियमों , धर्म का छोटे - बड़े कबीलों में
प्रचलन चल पड़ता है। अपने कबीलों को कट्टर और बड़ा करने की होड़ लगती है। इस तरह कोई भी मोक्ष परायण नहीं होता।
इन्द्रिय और विषय के के संयोग जिसे जितनी मात्रा में अधिक व्याकुल करते हैं उतना ही वह चोर,लुटेरा, आतंकवादी,शोषक, दम्भी ,हत्यारा,कपटी,और दुष्ट बनता है। मोक्ष के योग्य व्यक्ति दुष्टों को दण्ड देने व दिलवाने में सक्षम होता है जैसे भगवान शिव और विष्णु के भिन्न भिन्न अवतार आदि।
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