Know BhagwadGeeta 3/20

कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः ।
लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि ॥

भावार्थ : जनकादि ज्ञानीजन भी आसक्ति रहित कर्मद्वारा ही परम सिद्धि को प्राप्त हुए थे, इसलिए तथा लोकसंग्रह को देखते हुए भी तू कर्म करने के ही योग्य है अर्थात तुझे कर्म करना ही उचित है॥
श्रीमद भगवद्गीता एक मात्र शास्त्र है जो कर्तव्य कर्मों को करने की  भावना को बल  देती 
है। भगवान कृष्ण यह ज्ञान अर्जुन को दे रहे हैं। राजा जनक जैसे महान  ज्ञानी ने आसक्ति रहित राज काज किया और परम पद को प्राप्त हुए।  

यदि दुनियां को श्रीमद भगवद्गीता आचरण में आती  तो झूठे सम्प्रदाय  , आतंकवाद  ,निर्लज्जता  ,शोषण, चोरी-डाका ,गुंडा गर्दी ,भ्र्ष्टाचार ,झूठे वादे को कभी जाती,सम्प्रदाय,धर्म के आधार पर सामाजिक मान्यता न मिलती।उपरोक्त के खिलाफ जन आंदोलन होता। आध्यात्मिकता का वैज्ञानिक परीक्षण है श्रीमद्भगवद गीता। यह मनघड़ंत विचार नहीं है।  दुनियां का कोई भी मनुष्य इसका परीक्षण करके सही पायेगा।

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