Wah bhagwad Geeta 2/31

स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि ।
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥

भावार्थ :  अपने धर्म को देखकर भी तू भय करने योग्य नहीं है अर्थात्‌ तुझे भय नहीं करना चाहिए क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं है॥

दुनियां का एक मात्र ग्रन्थ श्रीमद्भगवद्गीता ही यह घोषणा करता है कि क्षत्रिय यानि राज काज वाले को डरपोक नहीं होना चाहिए धर्मयुक्त युद्ध करना चाहिए उदाहरण के लिए  पूर्व प्रधानमंत्रियों   ने १९४८ , १९७१ में भारतीय  सेना द्वारा पाक फोजों को खदेड़ने /हराने के बाद भी जीता हुआ इलाका बार बार छोड़ना कोई कल्याणकारी कर्तव्य नहीं रहा। 

वर्ष ११९१ में राजा पृथ्वीराज चौहान ने आक्रांता मुहम्मद गौरी को हराया और परन्तु अभिमान वश उसे छोड़ दिया अगले ही वर्ष उसने राजा पृथ्वीराज चौहान को हराया और क्रूरता से समूल  विनाश किया।
 जबकि भगवान कृष्ण ने दुष्ट जरासंध को मथुरा से द्वारिका बसने के बाद भी मरवाया था। 

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