सनातन सीख

आज के युग में माता -पिता ,भाई -बहिन ,बंधू बांधव से अधिक प्रचार प्रसार , सूचनाओं तथा भौतिकतावादी सोच का बोल बाला है ,उसमें हमारे रिश्ते कमजोर हो रहे हैं। मुझे बचपन याद आ रहा जब मेरे माता-पिता , बुब्बा  जी बुआजी , नांना -नन्नी जी कड़क रिश्तों के सम्मान सूचक निर्देश देते थे वह आज भी प्रासंगिक है । अतः  अपने से बड़ों से जब भी बात करें तो रिश्तों के सम्मान सूचक शब्द का प्रयोग अवश्य करें। जैसे 

माताजी ,पिता जी ,बड़े भाई जी ,मंझले भाई जी ,छोटे भाई जी ,पापाजी , मम्मी जी ,दादा जी ,दादी जी,बुब्बाजी ,जीजाजी ,दीदीजी ,मास्सी  जी  आदि आदि ।

गांव में दूसरी जाती के लोग भी निवास करते है ,बुजुर्गों ने उनके साथ भी रिश्ते बनाये होते हैं ,उनके अनुसार ही भावी पीढ़ी को अनुसरण करना होता है। कई बार धर्म भाई -बहिन अलग जाती से बनाने का यही तात्पर्य होता है। उच्च पद , अधिक पढ़े लिखे ,बड़े जमींदार होने पर भी कभी अपने से बड़ों का तथा बड़े रिश्तों  के सदस्यों के साथ मजाक ,अपमान वाली बहस की कभी इजाजत  नहीं हो सकती।

धन्यवाद  


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