Gyan swaroop Bhagwad Geeta 4/39
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥ इस श्लोक का अर्थ है: श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त कते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति (भगवत्प्राप्तिरूप परम शान्ति) को प्राप्त होते हैं। यदि ज्ञान प्राप्त करने की,रहस्य ज्ञात करने की इच्छा तत्पर हो तो श्रद्धा और इन्द्रयों के सयम के साथ साधना की जाए तो ही ज्ञान प्राप्त होगा और परम् शांति का अनुभव होगा। सांसारिक ,आध्यात्मिक शिक्षा के साथ प्रयोगात्मक अनुभव होने पर ज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रत्येक परिस्थिति में ज्ञान सदैव प्रकाशमान रहता है। इस युग में मनुष्य स्वयं को ज्ञानवान समझते है, संकल्प और विकल्प के भंवर जाल में फंस कर प्रयोगात्मक अनुभव के बगैर अज्ञानी बन कर जीवन गुजार देते हैं। उदाहरण के लिए भारत में जो मीडिया , सोशल मीडिया ,षड्यंत्रकारी,साम्प्रदायिक ,धार्मिक उन्मादी,विदेशी धर्म परिवर्तनकारी जो झूठा प्रचार करते हैं उससे लोग प्रभावि...